//ॐ // हिन्दू दलित उत्थान का शुभ संकल्प //ॐ//
//ॐ // हिन्दू दलित उत्थान का शुभ संकल्प //ॐ//
आज से सेकड़ो वर्ष पहले एक पवित्र दलित माँ मत्स्यगंधा के सुपुत्र महर्षि वेद व्यास ने गहरी सांस ली और वे सोचने लगे-
स्त्रिशुद्रद्विजबन्धूनां.........................
कर्म श्रेयसी मूढानाम श्रेय एव भवेदिह
सभी वर्णों की स्त्रियाँ, बहुजन दलित समाज और जिन्हों ने निति नियमों का उल्लघन किया है ऐसे पतित ब्राह्मन, क्षत्रिय, वैश्य, इन सब का उद्धार कैसे हो? इन सब का बौधिक, सर्वांगींन विकास कैसे हो? वैदिक ज्ञान को सर्व जन तक कैसे पहुन्चाया जाय? इस के लिए उन्होंने वैदिक कर्म कांड की क्लिष्टता को दूरकर ब्रह्म सूत्र, भगवद गीता, भागवत, पुराण, महाभारत जैसे महान अनेको बहुजन समाज दलित ग्रंथों का निर्माण किया. श्रुत वैदिक ज्ञान को पौराणिक स्मृति बनाकर सब को उसका अधिकार दे दिया. उन्होंने एक अती महत्वपूर्ण काम किया. रोमहर्षण नाम के एक विद्वान दलित को उन धर्म ग्रंथों का आचार्य बना दिया -
इतिहास पुरानानाम पिता में रोमहर्षण....भागवत.
बाद में उनके दलित पुत्र आचार्य उग्रश्रवा ने अठासी हजार ऋषियों को नैमिश्यारन्य में भागवत सप्ताह कथा का श्रवण कराया. आज भी हम भागवत में सूत उवाच शब्द का श्रवण करते रहते है. वे वही दलित रोमहर्षण के पुत्र उग्रश्रवा है, जिन्होंने ब्रह्मज्ञानी परम भक्त श्री शुकदेवजी जी से भागवत की कथा सुनी थी और वे भी इतिहास पुरानों के आचार्य थे. इस प्रकार महर्षि वेद व्यास जी ने स्त्रियों, दलितों आदि सब के उत्थान का महान पवित्र कार्य किया. इसीलिए हिन्दू समाज के मनीषियों ने उन्हें भगवान विष्णु का अवतार कहकर उनका सम्मान किया. आज से शेकडो वर्ष पहले महर्षि वेदव्यास जी ने जो स्त्री, दलित आदि के उत्थान की गंगा बहाइ थी वही १००० वर्ष की गुलामि के काल में धीमी पड गई थी, अब हमें सब को मिलकर इसको बहाना है. आज सम्पूर्ण हिन्दू जाती दलितों के उत्थान के लिए कृत संकल्प है. सभी लोग चाहते है की दलितों का हित हो. उनके लिए अनेको प्रकार की योजनायें, आरक्षण उसी का अंग है.तभी तो कुच्छ लोगों के रोनेगाने के ऊपर ध्यान न देते हुए बहु संख्यक समाज ने इसको स्वीकार किया.
यह समय दलित हिन्दू जाती का सुवर्ण युग है. आज समाज में बहुत कुछ बदलाव है. दलित जाती में भी बड़े बड़े विद्वान् लोग हुए है. ऐसे तो प्रभु राम, श्री कृष्ण, भगवान बुद्ध, तीर्थंकर रिषभदेव, महर्षि व्यास, बोद्धिसत्व बाबा साहब , देवर्षि नारद , महर्षि वाल्मीकि आदि अनेक भगवदीय पुरुष गैर ब्राह्मन ही हुए है. संत नामदेव दरजी, गोरा कुम्भार, सावता माली, संत गुरु रविदास जी ,चोखा मेला महार.गुरु नानकदेव जी. संत एकनाथ, संत कबीरदास , संत ज्ञानेश्वर, संत तुलसीदास जी आदि महान संत, गुरु , भगवान इस भारत भूमि को पवित्र कर रहे है. अभी हम सब लोग देख, पढ़ सुन रहे है पूज्य रामदेव बाबा जी दलित है. शुद्र है परन्तु वे आज योगगुरु है. सभी भारतीयों के वे आदरणीय है. हिन्दू धर्म में एक दलित भी इतना बड़ा पूजनीय बन सकता है यह हिन्दू धर्म ने दिखा दिया है. एक मोहमद रामायणी है. बहुत प्रसिद्ध एवं उच्च कोटि के रामायण के विद्वान् समाननीय है. वे मुस्लिम धर्म से है. बड़े बड़े साधू जन उन से निचे बैठकर उनसे कथा सुनते है.मोफत्लाल ग्रुप जैसे लोग उनके सिष्य है.अब वे साधू वेष में आ गए है. उनका नाम है स्वामी राजेश्वरानन्द जी महाराज.आज मुस्लिम भाइयों के साथ साथ यूरोपीय जातिया भी हिन्दू धर्म से लाभान्वित हो रही है.
ब्राह्मण जाती के महापुरुष भी समत्व मूलक समाज के निर्माण में ही काम कर रहे है. क्योंकी वे आज जान रहे है की पंडिता समदर्शिन समदर्शी होने के सिधांत को भुलाकर हमारे पुर्वजोने बहुत बड़ी बड़ी भूले की है. इसका परिणाम हम सब भोग रहे है. इसीलिए अब के सभी ब्राह्मण जाती के लोग भी दलितों का हित चाहते है. वे मनीषी प्रवचन में समत्वमुलक विचारों को आगे बढ़ाते है. उन्हें वे ऐतिहासिक भूलों को दीखाते है. सभी महात्माओं के प्रवचनों में दलित, ब्राह्मण, यादव, अहीर, मुसलमान आदि आते है. आज सभी जाती के महा पुरुष समत्व मूलक धर्म के जागरण में लगे हुए है.आज साधू समाज में चारो वर्णों के लोग है. अभी भी बहुत कुछ कचरा बाकि है.समय के साथ वह भी हट जाएगा.
दलितों का शोषण तो सब ने किया है.यहाँ कोई भी राजा आया उसने दलितों को मजदुर ही बनाकर रखा.चाहे वह हिन्दू राजा हो या मुसलमान.अब कुच्छ लोग दलितों को सिखा रहे है की आर्य ब्राह्मणों ने तुमारा हित नहीं होने दिया है. तुम उसके साथ विद्रोह करो. लड़ो मरो मारो. या दुसरे धर्म में आ जाओ. अभी मै सोहराब जी के ब्लॉग पर पढ़ रहा था. उसमे लिखा है की बाबासाहेब ने बौध धर्म स्वीकार कर गड़बड़ कर दिया है. उससे दलितों को साइड इफेक्ट हो गया है..उसकी यही दवा है की वे मुस्लिम बन जाये. येसी बातें हिन्दू जैसे नाम वाले व्यक्ति से कहलाई जाती है.ये लोग पूज्य बाबा साहेब जी को ही फेल करने पर तुले है. किसको दलितों के हित की पड़ी है? अब उद्देश्य तो स्पष्ट है दलित या तो मुस्लिम बन जाय या ब्राह्मणों के साथ लड़कर मरे. उनको जिन्दा रहने का अधिकार कहा है?
मुझे लगता है हम भी जाती और धर्म को लेकर हिन्दू दलितों, मुस्लिमों को भड़का रहे है फिर भी हम भाईचारा चाहते है. भाई के चारे से क्या मतलब है यह तो मै नहीं जानता.हाँ एक बात जरुर है कुछ लोग, जो सत्य ही भाईचारा चाहते है. वही हमारी शक्ति है. मुझे यह भी पता है की हम दुसरे को भड़काने, आंदोलित करने की अनुचित स्वतन्त्रता बनाये रखेंगे और फिर भी भाईचारे पर काम करते रहेंगे.
यह समय दलितों, शोषितों, महिलाओं आदिवासियों, गिरिजनों आदि के उत्थान का समय है. अभी तक सभी शासक रह चुके है. अब इनके शासक होनेका समय आ गया है. आपस में लडकर अवसर गमाने की मुर्खता हमें फिर गुलामी के युग में ले जा सकती है..आज आवश्यकता है जाती, धर्म आदि के भेद को भुलाकर परस्पर सहयोग, सह अस्तित्व, समत्व आदि के साथ आगे बढकर अपना एवं अपने राष्ट्र के उत्थान का संकल्प लेने की. जय हिंद, जय भारत, वन्दे मातरम.
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